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चीन की अमेरिका को कड़ी चेतावनी, ताइवान का समर्थन करेंगे तो चुकानी पड़ेगी भारी कीमत

अमेरिकी अधिकारियों के ताइवान पहुंचने पर चीन नाराज
एक तऱफ जहां रूस और यूक्रेन के बीच तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है वहीं दूसरी ओर चीन तथा अमेरिका के बीच भी तनातनी सामने आई है। इतना ही नहीं, रूस की तरह चीन ने भी अपने मामलों में दखलंदाज़ी के खिलाफ अमेरिका को धमकी दी है। अमेरिकी अधिकारियों के ताइवान दौरे पर चीन ने नाराजगी जताई है और लगे हाथ अमेरिका को कड़ी चेतावनी भी दे डाली है। चीन का कहना है कि अगर अमेरिका ताइवान की स्वतन्त्रता का समर्थन करेगा तो उसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। गौरतलब है कि पिछले दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा भेजा गया अमेरिका के पूर्व रक्षा अधिकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल ताइपे गया था। इस मुद्दे पर अमेरिका और चीन के बीच युद्ध की तरह ही युद्ध की आशंकाएं जताई जा रही हैं।
ताइवानी मीडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक संयुक्त चीफ ऑफ स्टाफ के पूर्व अमेरिकी चेयरमैन माइक एडमिरल मुलैन के नेतृत्व में पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल का ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ वू ने स्वागत किया था। बीते कुछ महीनों में चीन ने अपनी सैन्य तैयारियों को भी तेज कर दिया है। उसने ताइवान के वायु रक्षा क्षेत्र में अपने सैकड़ों जेट भेजे हैं। ताइवान और अमेरिका के अधिकारियों का कहना है कि रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने बाद ताइवान पर चीन की जबरन कब्जे की धमकी ने पूरी दुनिया का ध्यान भटकाया है।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले अमेरिका में चीन के राजदूत ने चेतावनी देते हुए कहा था कि वाशिंगटन अगर ताइवान की आजादी की आकांक्षा का समर्थन करता रहा तो दोनों देशों के बीच युद्ध की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
रूस और यूक्रेन के बीच सैन्य तकरार के बढ़ते खतरे के बीच अमेरिका ने चीन को चेताया था कि वह इस मौके का फायदा ताइवान में अपना दखल बढ़ाने के लिए न उठाए। अमेरिका ने चीन की पहले ही घेराबंदी कर रखी है। अमेरिका के परमाणु हथियारों से लैस दो युद्धपोत– एक फिलीपींस के समुद्र में तो एक अन्य जापान के योकोसूका में तैनात हैं। उसने चीन को सख्त संदेश दिया है कि वह ताइवान से दूर रहे।
उल्लेखनीय है कि चीन ताइवान को अपना प्रांत मानता है जबकि बीते कई दशकों से ताइवान स्वतंत्र देश है। वहां लोकतांत्रिक व्यवस्था है और जनता द्वारा चुनी हुई सरकार काम करती है। अमेरिका में चीनी राजदूत ने कहा था कि अगर अमेरिका ताइवान के अधिकारियों को उकसाता रहा और वहां की सड़कों पर आजादी के लिए विरोध होते रहे तो दोनों देशों के बीच युद्ध हो सकता है।