क्या पंजाब की काँग्रेस सरकार खालिस्तानिओं का एजेंडा चला रही है ?

पिछले सप्ताह पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने इस वर्ष 26 जनवरी गणतन्त्र दिवस के अवसर पर दिल्ली में दंगा करने और राष्ट्रध्वज का अपमान करने पर गिरफ्तार किए गए 83 आरोपियों को दो दो लाख रूपए की आर्थिक सहायता देने की घोषणा करके एक नए विवाद को जन्म दे दिया है।

पंजाब और हरियाणा के बीजेपी नेताओं ने इस घोषणा निंदा की है। खुलेआम कानून तोड़ने और राष्ट्र की गरिमा को क्षति पहुंचाने जैसा गंभीर अपराध करने वालों को प्रोत्साहन देकर कांग्रेसी मुख्यमंत्री किसका भला कर रहे हैं, ये तो वही जाने, लेकिन आम जनता को यह पूछने का अधिकार तो है कि सरकारी धन का ऐसा भीषण दुरुपयोग करने के पीछे कौन सा कुतर्क काम कर रहा है। कहीं यह तथाकथित किसान आंदोलन के नाम पर खालिस्तानिओं द्वारा चलाए जा रहे कुत्सित एजेंडे का परोक्ष समर्थन तो नहीं है?

पंजाब जैसे राज्य मेँ, जहां सरकार के पास धन की इतनी कमी है कि कर्मचारियों को पूरा वेतन देना तक मुहाल है, वहाँ संसाधनो का ऐसा दुरुपयोग अन्यथा भी अक्षम्य है। राज्य काँग्रेस इकाई के नए नवेले अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू स्वयं वित्तीय हालात पर सरकार की अच्छी छीछालेदर कर चुके हैं।

खालिस्तानी एजेंडे को ताकत देने का एक और प्रयास मुख्यमंत्री चन्नी ने 11 नवंबर को विधान सभा मेँ “पंजाबी एवं अन्य भाषा (संशोधन) अधिनियम 2021” पर बोलते हुए किया, जब उन्होने आरएसएस को पंजाब का शत्रु संगठन घोषित कर दिया। उन्होने आरोप लगाया कि 1961 की जनगणना के समय पंजाबियों को आह्वान किया गया था कि वे अपनी मातृभाषा हिन्दी लिखवाएँ। हिंदुओं और सिखों मेँ परस्पर वैमनस्य पैदा करने के लिए एक कदम और आगे जाते हुए उन्होने आरएसएस को पंजाबी भाषा विरोधी बताया।

चन्नी के इस दावे का खंडन करते हुए केंद्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष इकबाल सिंह लालपुरा ने अपनी एक पोस्ट में बताया है कि 1961 की जनगणना के समय पंजाब मेँ काँग्रेस पार्टी की सरकार थी और तत्कालीन आरएसएस प्रमुख माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ने स्वयं पंजाबियों से यह अपील की थी कि वे पंजाबी को ही अपनी मातृभाषा दर्ज करवाएँ।

इसी क्रम में, विधान सभा का विशेष सत्र बुला कर–राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से सीमावर्ती क्षेत्र मेँ बीएसएफ़ के अधिकार क्षेत्र मेँ वृद्धि के–केंद्र सरकार के फैसले को अस्वीकारने का प्रस्ताव पास करना एक और कड़ी जोड़ता है। उल्लेखनीय है कि काँग्रेस पार्टी के ही पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह–जो स्वयं सैनिक अधिकारी रहे हैं और देश की सुरक्षा के मामले मेँ हमेशा संवेदनशील रहे हैं–ने केंद्र के इस कानून का खुले दिल से स्वागत किया है। पूर्व-सैनिक होने के नाते वह भली भांति समझ सकते हैं कि सीमापार पाकिस्तान से आतंकवादियों की घुसपैठ, ड्रोन से देशविरोधी तत्वों को हथियारों की आपूर्ति, ड्रग तस्करी आदि की समस्याओं से निपटने के लिए बीएसएफ़ के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाना अनिवार्य है। राज्य की पुलिस ऐसी घटनाओं को रोकने में पूरी तरह सक्षम नहीं है। यह राजनीति का नहीं, राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है।

इसके अतिरिक्त, ये स्पष्ट रूप से देखने में आ रहा है कि मुख्यमंत्री चन्नी की सरकार नवजोत सिंह सिद्धू की कृपा पर आश्रित है। दूसरी ओर, सिद्धू का पाकिस्तान प्रेम किसी से छुपा हुआ नहीं है। ऐसे में, यदि सावधानी न बरती गई तो पंजाब मेँ फिर से अस्थिरता का दौर आ सकता है। कैप्टन अमरिंदर सिंह का संदेह निराधार नहीं लगता।

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