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काशी तो अविनाशी है, यहां जो कुछ होता है महादेव की इच्छा से होता है–मोदी
भव्य समारोह में प्रधानमंत्री ने काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडॉर का लोकार्पण किया
सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक भव्य समारोह में अपनी मनभावन परियोजना–वाराणसी के काशी विश्वनाथ कॉरिडोर–का लोकार्पण किया। मंदिर में विधिवत पूजा के बाद उन्होंने रविदास घाट पर संत रविदास की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की। तत्पश्चात, काशी की विश्वप्रसिद्ध गंगा आरती देखने के लिए दशाश्वमेध घाट पहुंचे। घाट के सामने मौजूद क्रूज से उन्होंने आरती और लेजर शो देखा। इस दौरान उनके साथ क्रूज पर राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा भी मौजूद थे। अधिकतर बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रिओं की भी कार्यक्रम में उपस्थिती रही।
विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, “जब मैं बनारस आया था तो अपने से ज्यादा भरोसा बनारस के लोगों पर था। कुछ लोग बनारस के लोगों पर संदेह करते थे। कैसे होगा, होगा ही नहीं, यहां तो ऐसे ही चलता है, मोदी जैसे बहुत आकर गए। राजनीति थी, स्वार्थ था इसलिए बनारस पर आरोप लगाए जा रहे थे, लेकिन काशी तो काशी है। काशी तो अविनाशी है। काशी में एक ही सरकार है, जिनके हाथ में डमरू है, उनकी सरकार है। भगवान शंकर ने खुद कहा है कि बिना मेरी प्रसन्नता के काशी में कौन आ सकता है, कौन इसका सेवन कर सकता है। काशी में महादेव की इच्छा के बिना न कोई आता है और न ही उनकी इच्छा के बिना यहां कुछ होता है। यहां जो कुछ होता है महादेव की इच्छा से होता है। ये जो कुछ भी हुआ है, महादेव ने ही किया है।”
अपनी चिरपरिचित शैली में लगभग 45 मिनट के संभाषण के दौरान प्रधानमंत्री पूरी लय में दिखाई दिए। उन्होंने संस्कृत के श्लोकों के उद्धरण दिए तो स्थानीय भाषा का भी मिश्रण किया। भोजपुरी भाषा और अंदाज़ में सम्बोधन शुरू करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा — “बाबा विश्वनाथ के चरणों में हम शीश नवावत हैं। माता अन्नपूर्णा के चरणन के बार-बार वंदन करत हैं। ई विश्वनाथ धाम तो बाबा अपने हाथ से बनैले हन। कोई कितना बड़ा हवै तो अपने घरै के होइहै। उ कहिए तबै कोई आ सकेला और कछु कर सकैला।“
विश्वनाथ मंदिर के प्रति टेढ़ी दृष्टि रखने वाले आक्रांताओं को लक्ष्य करते हुए मोदी ने कहा, “समय का चक्र देखिए आतंक के वो पर्याय इतिहास के काले पन्नों तक सिमट कर रह गए हैं। मेरी काशी फिर से देश को अपनी भव्यता दे रही है। काशी वो है, जहां जागृति ही जीवन है। काशी वो है, जहां मृत्यु भी मंगल है। काशी वो है, जहां सत्य ही संस्कार है। जहां प्रेम ही परंपरा है।”
प्रधानमंत्री के शब्दों में, “विश्वनाथ धाम का लोकार्पण भारत को नई दिशा देगा, उज्ज्वल दिशा की ओर ले जाएगा। ये हमारे संकल्प का परिचायक है कि अगर सोच लिया जाए तो असंभव कुछ नहीं। हर भारतवासी की भुजाओं में वो बल है, जो कल्पनीय को साकार कर देता है। हम तप और तपस्या जानते हैं, देश के लिए दिन-रात खपना जानते हैं। गुलामी के कालखंड में भारत को जिस हीन भावना से भर दिया गया था, आज का भारत उससे बाहर निकल रहा है। भारत सोमनाथ मंदिर का सौंदर्यीकरण ही नहीं करता, समंदर में हजारों किलोमीटर ऑप्टिकल फाइबर भी बिछा रहा है। केदारनाथ का जीर्णोद्धार ही नहीं कर रहा, अपने दम पर अंतरिक्ष में भी लोगों को भेज रहा है। राम मंदिर का निर्माण ही नहीं कर रहा, देश के हर जिले में मेडिकल कॉलेज बना रहा है। विश्वनाथ का निर्माण ही नहीं कर रहा, हर गरीब के लिए पक्के घर भी बना रहा है। नए भारत में विरासत भी है और विकास भी है।”
इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कॉरिडॉर परियोजना पर काम करने वाले मजदूरों और कारीगरों का सम्मान करते हुए स्वयं अपने हाथों से उन पर पुष्पवर्षा की और उनके साथ बैठ कर भोजन किया। ऐसे में गदगद हुए लोग ये चर्चा करते हुए सुने गए कि मोदी जैसा प्रधानमंत्री कभी नहीं देखा। प्रधानमंत्री मोदी ने काशीवासियों के साथ-साथ पूरे देश से स्वच्छता, सृजन और आत्मनिर्भरता के लिए सतत प्रयास—ये 3 संकल्प भी मांगे।
पहले तंग गलियों में स्थित जिस विश्वनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं के लिए पैर रखने तक की जगह नहीं होती थी, वहां अब सुकून के साथ श्रद्धालु समय गुजार सकेंगे। धाम का मंदिर चौक क्षेत्र अब इतना विशाल है कि यहां 2 लाख श्रद्धालु एकसाथ खड़े होकर दर्शन-पूजन कर सकेंगे।
उल्लेखनीय है कि श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर का क्षेत्रफल पहले सिर्फ 3,000 वर्ग फीट था। लगभग 400 करोड़ रुपए की लागत से मंदिर के आसपास की 300 से ज्यादा बिल्डिंग को खरीदा गया। इसके बाद 5,00,000 वर्ग फीट से ज्यादा जमीन में 400 करोड़ रुपए की लागत से भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है। धाम के लिए खरीदे गए भवनों को हटाने के दौरान 40 से अधिक मंदिर मिले। उन्हें विश्वनाथ धाम प्रोजेक्ट के तहत नए सिरे से संरक्षित किया गया है। ये कॉरिडोर वाराणसी के प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर को सीधा गंगा घाट से जोड़ता है। 800 करोड़ के इस प्रोजेक्ट के जरिए 241 साल बाद ये आध्यात्मिक केंद्र एक नए अवतार में नजर आ रहा है।